कहाँ सुरक्षित हैं बेटियाँ?

                          कहाँ  सुरक्षित  हैं बेटियाँ???               
             




सरकार ने  नारा बनाया है-' बेटी बचाओ, बेटी पढाओ'।

बेटियाँ  तो पढ रही हैं,  लेकिन क्या? 'हवस के भूखे

दंरिदो से बच पा रही है? जब भी TV देखो सिर्फ  यह ही

खबर होती हैं ' नाबालिग  से गैंगरेप','युवती का अपहरण 

कर गैंगरेप', बालिकागृह  में  मासूम बालिकाओं  से

रेप, घर में  घुसकर महिला  के साथ बलात्कार, अपहरण कर

बालिका  से गैंगरेप, यह ही News होती हैं  आजकल।





'बेटी पढाओ, बेटी  बचाओ ' यह नारा किस काम का हैं?

बेटी पढ़ने  जाए तो आँटो चालक, Teacher, Principal 

आदि से सुरक्षित  नहीं  है। मंदिर, चर्च, स्कूल, छात्रावास में 

कहाँ  सुरक्षित  हैं,बेटियाँ?




माँ-बाप अपने कलेजे के टुकड़े  को खूब  पढाना

पढाना चाहते हैं, बढाना चाहते है,लेकिन  अब डर लगता है 

कि पता नहीं  किस गली में कौन सी बस मे,स्कूल, छात्रावास 

में  ' हवस का भूखा भेड़िया, हमारी बेटियों  को

अपनी दानवता खा शिकार बना लें?



आज जरूरत  है बेटो को संस्कार  देने की

लड़को  को समझने की लड़कियाँ  कोई  मनोरंजन  का

साधन नहीं  है, कोई  खिलौना  नहीं  हैं, वो भी तुम जैसे  ही

इन्सान  हैं, लड़कियों  को भी हक हैं  पढ़ने  का, जीने का,

घूमने का, आजादी  से जीने का। तुम कौन होते हो लडकियो 

की असमत लुटने वाले?

पुरूष  क्यू  भूल जाता हैं  कि उसकी भी माँ  हैं,  बहन हैं,

पत्नि  हैं  बेटी हैं।  उनके साथ भी ऐसे ही कोई  कर सकता 

हैं। 




ऐसी कैसी 'हवस की भूख' की जानवर ही बन जाते है।

ऐसी हरकत तो आवारा कुत्ते  करते हैं, मगर वो भी हत्या 

जैसी घिनौनी हरकत नहीं  करते। पुरूष  की गंदी सोच,

मानसिकता  को बदलना बेहद जरूरी हैं  और यह तभी

संभव होगा जब घर से अच्छे   संस्कार  दिये जाए। लड़को 

को भी वैसे  ही पालो जैसे  लडकियो  को  पालते है।

पबंदी,अनुशासन, समय की पाबंदी,संस्कार, शिष्टाचार 

आदि  की शिक्षा  दी जानी 






कुछ दंरिदो के कारण बेटियाँ  कही भी सुरक्षित  नहीं है, 

अपने ही घर में  भी नहीं। आखिर  क्यू, ऐसी घिनौनी 

मानसिकता  होती जा रही हैं? आज बेटी घर से बाहर जाती 

है, तो माँ-बाप  उसकी सुरक्षा  के  लिए  र पल चिंता  में  ही

रहते हैं। तो क्या? बेटी को  जन्म ही न होने दे? फिर कहाँ  से

लाओगे अपने लिए  माँ?




बलात्कारी  को फाँसी  की सजा दी जा रही हैं,  लेकिन 

रावण के सिर की तरह, कुकुरमुत्ते की तरह हर दिन एक 

नया बलात्कारी  हर गली, मोहल्ले, मंदिर,  चर्च, आफिस, 

छात्रावास, आश्रम  में  जन्म  लेता जा रहा हैं। जंगलराज

जंगलराज बना रखा हैं  समाज को। 









कैसे  इज्जत  पाओगे, इस तरह के पाप के बाद? आत्मा 

मर जाती हैं  क्या? इंसानियत  नाम की चीज़ है कि  नहीं  

इन लोगों  में? या यह कहे इन्सान  भी होते हैं  क्या 

'बलात्कारी '?



आप लोग  भी बताए कि कैसे रहे बेटियाँ  सुरक्षित?

ऐसा क्या  किया जाए कि ' बलात्कार' हो ही नहीं?

कैसे  महिलाओं  को पुरूष  ' इन्सान ' समझे?

महिला, बेटियाँ  किस पर और कैसे भरोसे करे?

बलात्कारी  की सजा क्या  होनी चाहिये?

महिला  क्या  सिर्फ Sex  करने के लिए  ही होती हैं?


आप के जवाब का इंतजार  रहेगा।






       
      

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