अनुभव:- बी. पी की दवा

 अनुभव :- ' भलाई का जमाना है'।

           बी.पी की दवा


हमारी व्यस्तता को देखते हुए मां ने अपनी दवा खुद ही लाने का फैसला किया और दवा लेने चली गई बीपी की दवा लेने के पश्चात जब माँ ने बिल देखा तो 500 रूपये का था ।उस समय मां के पास ₹200 ही थे ,सो माँ ने दुकानदार से कहा कि 'आप आधी दवा दे दो मेरे पास पूरे पैसे नही है, या आप मुझे दवाईया दे दो, मैं यही नजदीक ही रहती हूँ । पैसे लाकर दे दूँगी '। किंतु दुकानदार माँ की दोनों ही बातों में सहमत नहीं हुआ। निराश माँ अभी सोच ही रही थी, कि तभी दुकान में खड़े एक नवयुवक ने सख्त लिहाजे में दुकानदार से कहा:-' इन्हे दवाइयां दे दो, पैसे मैं दे रहा हूँ,' और उस युवक ने तुरंत 500 रूपये दुकानदार की ओर बढ़ा दिये। माँ आश्चर्यचकित उस युवक को देखने लगी और उसे धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा :-' बेटा मेरे साथ घर चलो मैं तुम्हे पैसे दे दूँगी या अपना पता दे दो, मैं घर आकर पैसे दे जाऊँगी '।

माँ की बात सुनकर उस युवक ने मुस्कुराते हुए कहा :-' नहीं अंटी जी मैं आपसे पैसे नही लूँगा, आप मेरी माँ जैसी ही है, मेरी माँ भी ब्लड प्रेशर की मरीज है'। इतना कह कर वो युवक अपनी बाइक से निकल गया ।

माँ ने घर आकर सारा किस्सा सुनाया। हम सभी उस युवक की दरियादिल और भलमनसाहत की सराहना किए बिना न रह सकें। उस अनजान युवक ने माँ की मदद कर अच्छे संस्कारों का परिचय दिया और हमारी युवाओं के प्रति गलत धारणा को दूर कर दिया। ऐसे युवकों की सराहना की जानी चाहिए 

अनजान मददगार तहेदिल से शुक्रिया।

      

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