साधु का क्रोध

साधु का क्रोध
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मोहनिया नामक गाँव में एक महान साधु महाराज पधारे।सारा गाँव उनके प्रवचन सुनने के लिए एक स्थान पर एकत्रित हो गये।
साधु महाराज के प्रवचन का विषय था-क्रोध।साधु महाराज बता रहे थे,हमें क्रोध नही करना चाहिए,क्रोध से दूर रहना चाहिए,यह हमें नुकसान ही पहुंचाता है,क्रोध 'चांडाल' के सामान हैं।

साधु महाराज के प्रवचन को दूर बैठा एक जमादार भी सुन रहा था। प्रवचन देते-देते साधु महाराज के पेट में चूहे कूदने लगे और वो अपने यजमान के घर भोजन करने।

आगे-आगे साधु महाराज और उनके पीछे-पीछे जनता चल रही थी।तभी अचानक भीड़ का धक्का महाराज जी को ऐसा लगा कि साधु महाराज सीधे जा टकराए दूर खड़े जमादार से।

अब तो साधु महाराज का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वो बहुत नाराज हो गये और जमादार पर क्रोधित होते हुए कहने लगे रे!पापी तू ने मुझे छू दिया,मुझे गंदा कर दिया,अब मुझे गंगा स्नान करना पड़ेगा।

ऐसा कह साधु महाराज जल्दी-जल्दी गंगा तट की ओर भागने लगे,तभी उनकी नजर उनके आगे भागते जमादार पर पड़ी, जो गंगा तट पर भागे जा रहा था।

साधुमहाराज जोर से चिल्लाये और कहा ओ!पापी तू कहाँ जा रहा है?

साधु महाराज की बात सुनकर बड़ी ही मासूमियत से जमादार बोला-'महाराज जी अभी मैने चांडाल को छू लिया है,तो स्नान करने जा रहा हूँ ।
यह सुनते ही साधु महाराज को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उन्होंनें क्रोध करना छोड़ दिया ।

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